“वक़्त जो लौटकर नहीं आता” The Time That Never Returns
गाँव के एक छोटे से घर में रामलाल अपने परिवार के साथ रहता था। वह बहुत मेहनती आदमी था, दिन-रात सिर्फ़ पैसे कमाने में लगा रहता। उसकी दुनिया बस उसके व्यापार के इर्द-गिर्द घूमती थी। उसकी पत्नी सुनीता और दो बच्चे अजय और पायल हमेशा उसका इंतज़ार करते रहते, लेकिन रामलाल के पास उनके लिए समय ही नहीं था।
जब भी सुनीता प्यार से कहती –
“थोड़ा समय हमें भी दे दो, बच्चे तुम्हारे साथ बैठना चाहते हैं, बातें करना चाहते हैं।”
तो रामलाल झुंझलाकर कहता –
“अभी पैसे कमाने दो, जब बहुत सारा पैसा होगा, तब पूरी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बिताऊँगा।”
जो अपनों की कद्र नहीं करते…
रामलाल का स्वभाव बहुत कड़वा था। वह अक्सर अपने परिवार से गुस्से में बात करता, छोटी-छोटी बातों पर लड़ता-झगड़ता। कभी पत्नी से तकरार करता, कभी बच्चों पर चिल्लाता। उसे लगता था कि घरवालों की कदर करने की कोई जरूरत नहीं, बस पैसा हो तो सब खुश रहेंगे।
वक़्त बीतता गया…
अजय और पायल बड़े हो गए। अब वे भी धीरे-धीरे अपने पिता से दूर होते जा रहे थे। उन्हें भी अब पिता के समय की ज़रूरत नहीं रही। जब रामलाल घर आता, तो पायल अपने कमरे में पढ़ाई कर रही होती और अजय दोस्तों के साथ बाहर चला जाता।
एक दिन, रामलाल ने अजय से कहा –
“बेटा, मेरे साथ बैठो, थोड़ा बातें करते हैं।”
अजय ने बिना देखे ही जवाब दिया –
“अभी बहुत काम है, पापा। बाद में बात करेंगे।”
उस पल रामलाल को अपना ही कहा हुआ वाक्य याद आ गया – “अभी पैसे कमाने दो, बाद में समय दूँगा।”
लेकिन अब हालात बदल चुके थे, और वक़्त उसके हाथ से फिसल चुका था।
एक दर्दनाक अहसास
एक दिन, अचानक रामलाल की तबीयत बिगड़ गई। अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि उसे गंभीर बीमारी हो गई है, और अब उसके पास बस कुछ ही महीने बचे हैं।
ये सुनकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसकी आँखों के सामने पूरा अतीत घूम गया – बच्चों के साथ बिताने वाले अधूरे पल, पत्नी की वो तन्हाई, जो उसने कभी महसूस ही नहीं की थी।
अब पहली बार, उसे पैसे नहीं, बल्कि सिर्फ़ थोड़ा सा वक़्त चाहिए था।
वह अस्पताल के बिस्तर पर लेटा था, उसके बच्चे और पत्नी उसके पास खड़े थे। रामलाल ने कांपते हाथों से अजय का हाथ पकड़ा और रुंधे गले से कहा –
“बेटा, मैंने तुम्हारे लिए बहुत पैसे कमाए, लेकिन तुम्हारे साथ एक पल भी ढंग से नहीं बिताया। अगर आज मुझे कुछ चाहिए, तो बस थोड़ा सा वक़्त, जो मैं तुम सबके साथ हँसते-खेलते बिता सकूँ।”
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी…
बेटे की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने पहली बार अपने पिता का हाथ इतने कमजोर और ठंडे महसूस किया। पायल भी रोते हुए बोली –
“पापा, काश! आपने पहले समझा होता कि पैसा कमाने से ज़्यादा ज़रूरी अपनों के साथ समय बिताना होता है।”
रामलाल ने अपनी पत्नी की ओर देखा। सुनीता की आँखों में भी आँसू थे, लेकिन अब उन आँसुओं में कोई शिकायत नहीं थी – क्योंकि वह जानती थी कि अब समय निकल चुका था…
कुछ ही हफ्तों में रामलाल इस दुनिया को छोड़कर चला गया… लेकिन जाते-जाते वो अपने परिवार को सबसे बड़ा सबक दे गया –
“ज़िंदगी में पैसा ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है अपनों के साथ बिताया गया समय।”
सीख:
- जो लोग अपने परिवार की कदर नहीं करते, समय उन्हें बहुत बुरी तरह से सबक सिखाता है।
- पैसों की दौड़ में इतना मत उलझिए कि अपनों का प्यार ही खो दें।
- गुस्सा, तकरार और लड़ाई-झगड़े से कुछ नहीं मिलता, बस रिश्ते कमजोर हो जाते हैं।
- एक दिन ऐसा आएगा जब पैसा नहीं, सिर्फ़ थोड़ा और वक़्त चाहिए होगा, लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी।
अपने परिवार को समय दीजिए, उन्हें प्यार दीजिए, क्योंकि यही असली दौलत है।
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