Pahalgam Attack
“‘पहलगाम नहीं, ये भारत है’ कविता में लेखक ने देश की स्थिति, धर्म और राजनीति पर तीखा व्यंग्य किया है। यह कविता उन कायरतापूर्ण कृत्यों और समस्याओं पर सवाल उठाती है जो समाज में बढ़ रही हैं।”
भारत, एक भूमि जो हमेशा से अपने वैभव और विविधता के लिए प्रसिद्ध रही है, आज आतंकवाद, राजनीति और समाज के विकृत रूपों से जूझ रही है। “पहलगाम नहीं, ये भारत है” कविता में लेखक ने कश्मीर के पहलगाम जैसे खूबसूरत स्थान की पृष्ठभूमि में देश की वर्तमान स्थिति को चित्रित किया है। यह कविता न सिर्फ कश्मीर के आतंकवादी हमलों पर सवाल उठाती है, बल्कि पूरे देश की सुरक्षा, धर्म, और राजनीति के खेल पर भी विचार करने के लिए मजबूर करती है। कविता में यह सवाल उठाया गया है कि आखिर हम खामोश क्यों हैं, जबकि हमारा देश धर्म, आतंकवाद, और भ्रष्टाचार से प्रभावित हो रहा है। क्या हमने अपनी आवाज खो दी है, या फिर हमारी चुप्पी ही इस दर्द का हिस्सा बन चुकी है? यह कविता एक मजबूत संदेश देती है कि हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और एकजुट होकर इन समस्याओं से लड़ने की जरूरत है। इस कविता के माध्यम से समाज की असल तस्वीर सामने आती है, जहां हर नागरिक को अपनी भूमिका निभाने की आवश्यकता है। **क्या हम जागेंगे या फिर इसी तरह चुप्प रहेंगे?**
खामोश हुए क्यों बैठे हो?
पूछो जिम्मेदार है कौन?
वो कायर है, धिक्कार उसे
धार लिया है जिसने मौन।
भारत का स्वर्ग, नरक बना,
मानवता का खून बहा,
भगवाँ था या रंग हरा?
बोल दुष्ट तूँ बोल ज़रा
धिक्कार सुरक्षा ऐसी को,
जान सके ना खतरा जो,
गिन लिए थे सिर कुम्भ मेले में
कहाँ गए वो सुपर ड्रोन?
खामोश हुए…
जहर उगलते टी वि चैनल,
धर्म उन्मादी बनते पैनल,
कहो उन्हें दिमाग से पैदल,
धर्म बनाते टूल पोलिटिकल,
आग लगाता मीडिया सोसल,
समाज की दीमक़ ये है टोटल,
क्यों फैलाते हैँ ये बिमारी?
देश के मुद्दे क्यों हैँ गौण?
खामोश हुए….
छोड़ो ट्विटर, दोषारोपण,
राजनीति का तुष्टिकरण,
करलें अब भी हम मंथन,
कमजोरी पर करें चिंतन,
सर्व सुरक्षित जन, गण, मन,
आतंक विरोधी छेड़ें रण,
सुरक्षा में हो अनुशासन,
कट्टरता के संगठन क्यों?
धर्म धुरंधर क्यों हैँ डॉन?
खामोश हुए…
पहलगाम नहीं, ये भारत है,
उन दानवों की कायरता से
हर भारतवासी आर्त है।
नहीं धर्म सिखाता खून बहाना,
गीता के ये श्लोक कहे,
कुरान की ये आयत है..
जहर उगलते भाषण क्यों?
‘मोहन’ ये पूछेगा कौन?
खामोश हुए…
©मोहन लाल वर्मा
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